११/१२/२०२५ टी यन न्यूज 24 गुजरात हेड राजेंद्र तिवारी
१० दिसम्बर मानव अधिकार दिवस के आयोजन में असंगठित और प्रवासी मज़दूरों की मांगों को लेकर मानव अधिकार मंच के द्वारा सूरत जिला कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन जिसमे बताया गया कि मानव अधिकार मंच” पिछले 18 वर्षों से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों (जैसे- साड़ी कढ़ाई, बांध काम, डोर टू डोर कचरा प्रबंधन, ईंट निर्माण, घरेलू मज़दूरी) के हक़ और अधिकारों के लिए कार्य कर रहा है। दिनांक *10 दिसंबर 2025* को मानव अधिकार दिवस पर, उमरा पुलिस स्टेशन के पास, सूरत में एक जनसभा कर मानव अधिकार दिवस मनाया गया
इस सभा में कढ़ाई श्रमिक, डोर टू डोर कचरा एकत्र करने वाले श्रमिक, साड़ी कढ़ाई में काम करने वाले, घरेलू मज़दूर, भाषा यी और ईंट भट्टा मज़दूर बड़ी संख्या में भाग लिए इस सभा में मज़दूरों की प्रमुख मांगों को एक ज्ञापन के रूप में जिला कलेक्टर के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री श्री को सौंपा गया मानव अधिकार मंच की मांगों पर समय पर कार्यवाही कर, श्रमिकों को न्याय देने हेतु अनुरोध किया है तथा बंधुआ श्रमिक (बंधुआ मज़दूर) बंधुआ श्रमिकों को दुर्घटना, विकलांगता और वृद्धावस्था के कारण हुई मृत्यु के लिए ₹5000/- की सहायता दी जाए और बंधुआ श्रमिकों के लिए 1966 अधिनियम और 1978 अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए।
* बंधुआ श्रमिकों के प्रत्येक समूह पर सरकार द्वारा कम से कम एक स्नातक पास व्यक्ति को सहायक के रूप में नियुक्त किया जाए और सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले न्यूनतम वेतन, सरकारी भत्ते, और अन्य लाभ उन्हें दिए जाएँ और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त संस्थानों में अस्थायी रूप से नियुक्त किया जाए।
* यदि कोई बंधुआ श्रमिक काम करते समय दुर्घटना के कारण अपनी नौकरी खो देता है, तो उस दुर्घटना के लिए बंधुआ श्रमिक को पूरी मजदूरी का भुगतान किया जाए, और दुर्घटना होने पर भी उसे कोई लाभ नहीं दिया जाएगा, ऐसा कहकर उसे काम से नहीं निकाला जाए।
* यदि किसी बंधुआ श्रमिक को अनुचित तरीके से काम से निकाल दिया जाता है, तो सभी बंधुआ श्रमिकों को ₹3000/- का मासिक पेंशन दिया जाना शुरू किया जाए।
* बंधुआ श्रमिक के वेतन या संपत्ति के दुरुपयोग या दुरुपयोग का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए और सभी बंधुआ श्रमिकों की कानूनी सहायता की जाए।
* आदिवासी बंधुआ श्रमिक जो शहरों में रहते हैं, उन्हें नौकरी के लिए पंजीकृत किया जाता है, जब वे शहर में काम करने के लिए आते हैं। और श्रमिकों को पारिश्रमिक के लिए पंजीकृत किया जाता है। आदिवासी श्रमिकों के लिए पंजीकृत सहकारी समितियाँ बनाई जाएं और उन्हें काम दिया जाए, और शहरी विकास प्राधिकरण या किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने निर्माण कार्यों में आदिवासी बंधुआ श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए मजबूर किया जाए।
* युवा आदिवासी बंधुआ श्रमिकों के लिए प्राथमिक सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और एस.टी. स्टैंड आदि की व्यवस्था की जाए और इन आदिवासी श्रमिकों के लिए समग्र विकास की व्यवस्था की जाए।
* मकान बनाने वाले बंधुआ श्रमिक अधिनियम 1966 के तहत गुजरात सरकार द्वारा निर्माण और बंधुआ श्रमिकों के लिए कल्याण बोर्ड का गठन किया जाए। गुजरात सरकार सेस (उपकर) के रूप में 1% का लाभ प्राप्त करती है।
टी यन न्यूज 24 आवाज जुर्मके खिलाफ सूरत से संवाददाता राजेंद्र तिवारी के साथ राजेश देसाई कि खास रिपोर्ट स्थानीय प्रेस नोट और विज्ञापन के लिए संपर्क करें 9879855419
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