गीतों में जाते दोहे का विमोचन युद्ध हॉस्टल में किया गया गीतकार संजीव कुमार संत 9 गीत रूप में इस संकल्प को सहारा प्रशांत उपाध्याय ने का पाठ में कुछ यूं प्रस्तुति दे ना पाए एक आदमी को काम तो क्या मुफ्त में बांटे ने निवाले जा रहे हैं वही निर्मल सक्सेना के हास्य व्यंग केशव को तालियों पर मजबूर कर दिया उनकी आंखों में तो दर्पण का मजा लेते हैं जब चले चाहे तो धड़कन का मजा लेते हैं उनके अंदर होने ना अंधेरों को लगाते कभी
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