*अयोध्या : कोरोना जैसी वैश्विक महामारी मे आर्थिक संकट से गुजरे अधिवक्ता, खोखली रही सरकार व्यवस्था*
*हो गई है पीर पर्वत से पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए, सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,पूरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए*
जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता व समाजसेवी कुलदीप उपाध्याय ने अधिवक्ताओं के मुद्दों पर बात करते हुए हमें बताया की कोविड -19 एक वैश्विक महामारी के रूप मे दुनिया भर मे फ़ैली रही, देश की प्रदेश की सरकारों ने लोगों के खाते मे भत्ता भेजा ,सरकारी कर्मचारियों के खाते मे बिना काम किये घर बैठे तनख्वाह भेजी गई, लेकिन अपनी मेहनत से शिक्षा ग्रहण कर लोक हित मे न्याय की रक्षा करने वाले अधिवक्ता बंधुओ को सिर्फ अधिवक्ता होने भर से कोई भत्ता कोई या सहयोग राशि तक नही दी गई, उन भयावह दिनों को भूला नही जा सकता, वरिष्ठ अधिवक्ता ने महान कवि व व्यंग्यकार दुष्यत कुमार की कविता ” हो गई है पीर पर्वत से पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए, सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,पूरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ” सुनाते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा वो दिन और उनके वाक्ये उनके दिल मे एक टीस की तरह हैं, उन्होंने आगे कहा इसके अलावा भी हमारे अधिवक्ता भाईयो को कभी किसी भवन निर्माण, कार्यालय जैसी आवश्यक सुविधाएं, वरिष्ठ अधिवक्ताओं को पेंशन , युवा अधिवक्ताओं को पुस्तके खरीदने व अधिक ज्ञानार्जन के लिए भत्ता या स्वास्थ्य या इलाज हेतु कोई व्यवस्था सरकारों द्वारा कभी नही की गई ना ही बार कौंसिल मे बैठे हमारे भाई इन मुद्दों को उठाने की जमहत ही करते है जो दुर्भाग्यपूर्ण है मैं लंबे समय से इन मुद्दों को उठाता रहा हूँ और इन मसलों पर लंबा संघर्ष किया है कोई रास्ता ना देखकर और प्रिय अधिवक्ता बंधुओ के प्रेम और आग्रह पर इस मर्तबा बार कौंसिल उत्तर प्रदेश का सदस्य पद का प्रत्याशी हूँ मेरी आवाज़ को हर जगह अधिवक्ता मित्रो का भरपूर समर्थन मिल रहा है जो मेरे लिए गर्व का विषय है
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