समस्त देशवासियों को रमजान मुबारक
डिस्क्लेमर:– इस खबर में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है , एवं किसी भी शब्द या अर्थ किसी प्रकार की त्रुटि हुई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं ।
सोमवार को रमजान के चाँद का दीदार हो गया है। चाँद के दीदार के साथ ही मुक़द्दस महिना रमजान की शुरुआत हो गई है। आलम-ए-इस्लाम में खुशियों की लहर दिखाई दे रही है। कल से पहला रोज़ा शुरू होगा। आज मस्जिदों में नमाज़-ए-तरावीह की शुरुआत हो गई है। पहले दिन की नमाज़-ए-तरावीह मुकम्मल हो चुकी है। सुबह सहरी के लिए बाजारे गुलज़ार है।
लोगों ने रमजान के पहले दिन तरावीह की नमाज अदा की। पुरे मुल्क में सामानों की खरीदारी करने के दौरान काफी भीड़ और चहल- पहल भी देखी गई। कई शहरों में सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम किए गए हैं। बिल्खुसुस बनारस में बाजारे अधिक गुलज़ार नज़र आई और आलम-ए-इस्लाम में खुशियों का माहोल देखने को मिल रहा है। इस मुक़द्दस महीने में तमाम मुसलमान रोज़ा रहते है और अपने वक्त को अल्लाह की इबादत में उसकी रज़ा के खातिर बिताते है।
आलम-ए-इस्लाम के लोगों के लिए रमजान का महीना सबसे पाक और मुक़द्दस माना जाता है। इस्लामिक कैंलेंडर के अनुसार यह नौंवा महीना होता है और इसे माह-ए-रमजान कहा जाता है। मुसलमान लोग पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर रोजा रखते हैं और सूर्य के डूबने तक कुछ नहीं खाते पीते। सूर्योदय से पहले सहरी होती है और शाम को सूर्य के डूबने के बाद रोजा इफ्तार। इस दरमियान गले के नीचे खाने अथवा पीने की चीज़े तो दूर थूक तक अंदर नही जाता है। मुस्लिम समाज के लोग अल्लाह की पूरे महीने इबादत करते हैं और तमाम आलमीन की खैर-ओ-बरकत के दुआ करते है।
रोजा रखने के लिए न सिर्फ भूख और प्यास पर नियंत्रण किया जाता है बल्कि बुरा न सुनने, बुरा न बोलने और बुरा न देखने के नियम का भी पालन करना होता है। रोजा रखने के दौरान किसी का उपहास न उड़ाना, वाणी पर नियंत्रण के साथ साथ अपने नफस पर भी नियंत्रण किया जाता है। रोजा रखने वालों को रोजाना कुरान का पाठ करना चाहिए। रोजा रखने वालों को रोजाना किसी गरीब और जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। इससे आप मुस्लिम होने का फर्ज अदा करते हैं।
रमजान के माह में साहिब-ए-निसाब (ऐसे लोग जिनके पास सोने अथवा चांदी के जेवरात एक तय मात्रा में हो, जिसकी कीमत वर्त्तमान में लगभग 3 लाख के लगभग होता है।) पर ज़कात फ़र्ज़ होती है। ज़कात उतने सामन के मूल्य के जितने का माल जर है का ढाई फीसद किसी गरीब को दिया जाता है। साथ ही ईद के नमाज़ से पहले सदका-ए-फ़ित्र हर एक मुसलमान को किसी गरीब को देना होता है। बहुत ही बरकतों वाले इस मुक़द्दस महीने की शुरुआत हो चुकी है, जहा एक नेकी के बदले 70 नेकियो का सबाब रब्बुल आलमीन देता है। हम अपने सभी सुधि पाठको को रमज़ान की मुबारकबाद देते है।
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