सहकारिता भारतीय जीवन पद्धति का अविभाज्य अंग

अर्जुन रौतेला संवादाता आगरा। सहकारिता के माध्यम से देश का समग्र विकास संभव है तथा भारत को यदि एक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करना है, तो वह सरकार सहकारिता के माध्यम से ही संभव हो पाएगा – यह विचार आज यहाँ डॉक्टर भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के संस्कृति भवन के सभागार में विभिन्न विद्वानों ने प्रकट किया। कार्यक्रम था सहकार भारती के 47वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार संगोष्ठी का। कार्यक्रम संयोजक एवं सहकार भारती आगरा मंडल के विभाग संयोजक राकेश शुक्ला ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कार्यकारणी की सदस्य करुणा नागर ने की तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यकारिणी के सदस्य भवेंद्र मुख्य अतिथि थे ।


11 जनवरी के 47 वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या कार्यक्रम का प्रारंभ दीपक प्रज्वलित कर माँ सरस्वती तथा सहकार भारती के संस्थापक स्वर्गीय लक्ष्मण राव इनामदार जी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर शुरू किया गया । प्रोफ़ेसर वेद प्रकाश त्रिपाठी ने सहकार भारती तथा इसके उद्देश्यों से सदस्यों का परिचय कराया, तत्पश्चात विशिष्ट अतिथि डा॰ ओमवीर सिंह, सलाहकार राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड, नई दिल्ली ने कहा कि सहकारिता का इतिहास भारत में वह पुराना है, भारत में स्वतंत्रता से पूर्व सहकारिता के माध्यम से विकास के तमाम कार्य किए गए । उन्होने आगे कहा कि सहकारिता के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में विभाजनकारी प्रवृत्तियाँ पनपती हैं उनका भी उन्मूलन सहकारिता से किया जा सकता है। सिंह ने आगे बताया कि जिन जिन ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों उन्हें उन क्षेत्रों में अदालती झगड़े और विवाद अधिकारियों को बहुत कम देखने को मिलता है। सिंह ने कहा था कि सहकारिता के माध्यम से उन्नत क़िस्म के बीज ग्रामीण क्षेत्रों में वितरित किए जा सकते है।

विभाग संयोजक राकेश शुक्ला ने सहकार भारती के अनको लाभ बताए जैसे सहकारी संस्थाओं का सशक्तिकरण: छोटे व्यापारियों, किसानों और उद्यमियों को संगठित कर सामूहिक लाभ। आर्थिक विकास: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार व समृद्धि।
शिक्षा और जागरूकता: सहकारिता के महत्व पर प्रशिक्षण।सामाजिक एकता: समुदायों को जोड़कर समस्याओं का समाधान। सरकारी योजनाओं से जुड़ाव: योजनाओं का सही क्रियान्वयन। वित्तीय सहायता: सहकारी बैंकों से ऋण दिलाने में मदद। महिला एवं कमजोर वर्ग का उत्थान: आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण।

सहकारिता विभाग के अपर जिला सहकारी अधिकारी हरिओम ने कहा कि आज नैनो यूरिया तथा नैनों फर्टिलाइजर विकसित किए गए हैं, जो न्यूनतम नुक़सान पहुँचाते हैं और फसलों की उत्पादकता को बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी संस्थाओं के माध्यम से इस प्रकार की उर्वरकों का वितरण हो रहा हैं। ये उर्वरक सस्ते भी पड़ते हैं और अधिक प्रभावशाली भी होते हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री भवेन्द्र ने कहा कि सहकारिता के माध्यम से समाज में एकता तथा सद्भाव की स्थापना हो सकती है, पुरातन भारतीय समाज में सहकारिता के मूल्य स्वामियों को समाहित करने की वजह थी कि, वह समाज आज की अपेक्षा बहुत सुखी समाज था उस समय सभी व्यक्तियों के निर्णयों में सहभागिता होती थी। और वे सभी सामाजिक दायित्वों को सहकारिता के माध्यम से बढ़ी ही सक्रियता के साथ निभाते थे।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के डा॰ लव कुश मिश्रा ने कहा कि आज हमारा समाज व्यक्तिगत स्वार्थों की भेंट चढ़ गया है, सभी एक दूसरे का गला काटने में लगे हैं, सभी एक दूसरे को नुक़सान पहुँचाने में लगे हैं, ऐसे में सहकारिता की भावना ही सब में उन्हें एक का सामंजस्य और सद्भावना की स्थापना कर सकती है, जो कि किसी भी देश के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है।

कार्यक्रम का संचालन विभाग संयोजक राकेश शुक्ला ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रोफ़ेसर पी के सिंह ने किया । सहकार भारती के सह संपर्क प्रमुख राणा प्रताप ने भी अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम में मुख्य रूप से अपर जिला सहकारी अधिकारी कमलेश, नम्रता सिंह, मीना शर्मा, नीलम कुशवाह, राजकुमारी सिंह , प्रो. भूपेंद्र सिंह, रोहित तबकले, नंदनंदन गर्ग, संदीप दिवाकर, रुचि मित्तल, प्रो॰ अमिता त्रिपाठी, डॉ॰ ज्योति गुप्ता, अनिल सिंघल, नीलम, सिरसा कुशवाहा, सुनीता, रुक्मणि, राजकुमारी, प्रेमलता, ममता, अनीता, सुनीता जादौन, रचना, अंजली, अर्चना, मंजू, पिंकी शर्मा लता, मीरा, रेणु, बबिता, श्यामवती, ज्योति, रीमा, लक्ष्मी निषाद, पल्लवी, रजनी, राजवती, ओमवती, ललतेश,रुक्मणि, हिमांशी, नेहा, रूपम सिंह सहित अनेकों सहकार कार्यकर्ता एवं गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

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gc goyal rajan
  • अर्जुन रौतेला आगरा

    रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद। सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद।। मेहंदी का रंग प्राप्त करने के लिए उसको पत्थर पर पिसा जाता है, तब लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य जो जितना "दर्द अथवा कठिन कर्म" करता है, लोग उसी की तरफ आकर्षित होते हैं।

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