अर्जुन रौतेला संवादाता आगरा। ‘ताज लिटरेचर क्लब’ द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 13, ईश्वर नगर, शास्त्रीपुरम एक विचार गोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ. राजेंद्र मिलन ,विशिष्ट अतिथि डॉ. शशी गुप्ता , विशिष्ट अतिथि श्री रामेंद्र शर्मा रवि, कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ रामप्रकाश चतुर्वेदी, संस्थापक इंजीनियर राजकुमार शर्मा द्वारा सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया गया।
कार्यक्रम में ब्रजभाषा के वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा देश भक्ति से ओत प्रोत कविताएं प्रस्तुत की गईं जिससे पाठक मंत्रमुग्ध हो उठे। काव्य पाठ
आचार्य उमाशंकर पाराशर ,
रविन्द्र वर्मा, डॉ. हरवीर परमार
कामेश सनसनी, डॉ. शिखरेश तिवारी, डॉ शुभद्रा पाण्डेय, डॉ राजेंद्र दबे, डॉ.शेषपाल सिंह शेष, प्रभुदत्त उपाध्याय, हरीश भदौरिया, राजेंद्र दंडौतिया, डॉ. सुषमा सिंह, राज फौजदार ने किया। कार्यक्रम का संचालन कवयित्री अनुपमा दीक्षित ने किया। अध्यक्ष भावना वरदान शर्मा ने कहा गणतंत्र दिवस का यह पर्व हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध कराता है। यह राष्ट्र का पर्व है। प्रत्येक भारतीय इस दिन हर्षोल्लास से भर कर स्वतंत्रता के पर्व पर उत्सव का आयोजन करता है।
मुख्य अतिथि डॉ राजेंद्र मिलन ने विचार गोष्ठी में गणतंत्र दिवस पर वक्तव्य देते हुए कहा किसी भी देश की संस्कृति में साहित्य और कला का विशेष योगदान होता है। हिंदी साहित्य में ब्रजभाषा का प्रमुख स्थान है। ब्रजभाषा के क्षेत्र में कार्य होना चाहिए और ब्रजभाषा के लेखकों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। कार्यक्रम में रोहित कत्याल, लालाराम तैनगुरिया , अलका सिंह शर्मा नटरांजलि, कृष्ण दत्ताचार्य, नीरू शर्मा आदि उपस्थित रहे।
अनुपमा दीक्षित की पंक्तियां थीं
भारत माँ के लाल वतन पर हंसकर जान लुटाते हैं।
धरा धाम का कर्ज चुकाकर ओढ तिरंगा आते हैं ।
डॉ राम प्रकाश चतुर्वेदी ने इन पंक्तियों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया
मम मोक्ष दायनी तरण तारणी सूर्य सूता संग शारदा गैगा।
संगम तीर्थ धरा पर बहती ऐसी पतित पावनी है मां गंगा।
तीर्थराज इसे कहें हम हर हर गंगे यहां हर पल गगा।
कोटि-कोटि के हर करम विषैला क्षण क्षण क्षीण करे यह गगा
भारत अवनी विराजे युगों से हिमगिरी रूप में कंचन गंगा।
Prem Chauhan
Editor in ChiefUpdated Video
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रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद।
सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद।।
मेहंदी का रंग प्राप्त करने के लिए उसको पत्थर पर पिसा जाता है, तब लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य जो जितना “दर्द अथवा कठिन कर्म” करता है, लोग उसी की तरफ आकर्षित होते हैं।