चीर के छाती अपनी बोले पवन पुत्र हनुमान, मेरे मन में बसे हैं राम, मेरे तन में बसे हैं राम…

आगरा संवादाता- अर्जुन रौतेला। दशानन का वध कर जब भगवान राम अयोध्या नगरी लौटे और राज्याभिषेक का उत्सव सम्पन्न हुआ तक दरबार में उपस्थित सभी लोगों को उपहार प्रदान किये गए। अपने प्रिय पुत्र हनुमान जी को माता सीता ने रत्नजड़ित माला दी, जिसे हनुमान जी ने अपने दांताें से तोड़ दिया। माला के हर मोती को हनुमान जी तोड़ते जा रहे थे और गौर से देखे जा रहे थे। उदास होकर सारे मोती फेंक दिए। इस पर लक्ष्मणजी क्रोधित हो गए और इसे श्रीराम का अपमान समझा। तब श्रीराम द्वारा हनुमान जी से इस कृत्य का कारण पूछा गया तब हनुमान जी बोले मेरे लिए हर वो वस्तु व्यर्थ है जिसमें मेरे प्रभु राम का नाम ना हो। तब लक्ष्मण जी ने हनुमान जी को उलाहना दिया कि तुम्हारे शरीर पर भी तो राम नाम अंकित नहीं है। लक्ष्मण जी की बात सुन हनुमान जी ने अपना वक्षस्थल नाखूनों से चीर दिया, जिसमें श्रीराम और माता सीता की सुंदर छवि विराजित थी। जैसे ही ये दृश्य मंचित हुआ सीया पति रामचंद्र जी की जय, पवनपुत्र हनुमान जी की जय के जयघोष से पूरा प्रांगण गूंज उठा। और इसके साथ ही विश्राम दिया गया दस दिवसीय बाबा मनःकामेश्वर नाथ राम लीला महोत्सव काे।

बुधवार को गढ़ी ईश्वरा, ग्राम दिगनेर, शमशाबाद रोड स्थित श्रीमनः कामेश्वर बाल विद्यालय में चल रहे बाबा मनःकामेश्वरनाथ रामलीला महोत्सव के अंतिम दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। गुरु वशिष्ठ के स्वरूप में श्रीमहंत योगेश पुरी, मठ प्रशासक हरिहर पुरी ने श्रीरामचंद्र जी के स्वरूप कों राज सिंहासन पर बैठा कर आरती उतारी। इस उत्सव में घर− घर प्रसादी का वितरण किया गया। इसके बाद हनुमान जी द्वारा अपना सीना चीरकर भगवान के रूप के दर्शन करवाए गए। समापन के अवसर पर वृंदावन के कलाकारों द्वारा रासलीला में दानलीला का मंचन किया गया। 28 अक्टूबर शरद पूर्णिमा पर पूरे गांव को सोरों गंगा स्नान के लिए निःशुल्क बस सेवा द्वारा ले जाने की सूर्य प्रताप द्वारा घाेषणा की गयी।

फोटो, कैप्शन− गढ़ी ईश्वरा, दिगनेर, शमशाबाद रोड स्थित श्री मनः कामेश्वर बाल विद्यालय में आयोजित बाबा मनःकामेश्वर नाथ राम लीला महोत्सव में लीला मंचन करते कलाकार।

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  • अर्जुन रौतेला आगरा

    रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद। सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद।। मेहंदी का रंग प्राप्त करने के लिए उसको पत्थर पर पिसा जाता है, तब लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य जो जितना "दर्द अथवा कठिन कर्म" करता है, लोग उसी की तरफ आकर्षित होते हैं।

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