कसौधन समाज समिति बहराइच के तत्वाधान में बहराइच कसौधन समाज ने आज महर्षि कश्यप जयंती बहुत धूम धाम और उत्साह के साथ भानी राम का अतिथि भवन में मनाया ।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता बहराइच कसौधन समाज के अध्यक्ष आनंद नारायण कसौधन ने की ।
सर्वप्रथम कार्यक्रम में आए हुए कसौधन बंधुओ ने महर्षि कश्यप की तस्वीर पर पुष्पांजलि की गई , उसके पश्चात सुंदरकांड का आयोजन किया गया ।
सुंदरकांड के पूर्व कसौधन समाज के अध्यक्ष आनंद नारायण कसौधन ने महर्षि कश्यप की जीवन गाथा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब हम सृष्टि विकास की बात करते हैं तो इसका मतलब है जीव, जंतु या मानव की उत्पत्ति से होता है। ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने बहुत-सी स्त्रीयों से विवाह कर अपने कुल का विस्तार किया था। आदिम काल में जातियों की विविधता आज की अपेक्षा कई गुना अधिक थी।
ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। मान्यता अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी।
कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे। समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे। कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी।
पुराण अनुसार सृष्टि की रचना और विकास के काल में धरती पर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ। ब्रह्माजी के निवेदन पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएँ पैदा की ।इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ ऋषि कश्यप की पत्नियाँ बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए। ऋषि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने जाते हैं। विष्णु पुराणों अनुसार सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार रहे हैं- वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ ऋषि कश्यप की पत्नियाँ बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए।
माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था।
समाज के महामंत्री सुरेश गुप्ता ने
कसौधन समाज के बारे में कहा की वैश्य उपवर्गो मे एक श्रेष्ठ उपवर्ग… श्री कश्यप ऋषि की तपोस्थली ‘‘कश्यपमेरु’’ नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसे आज कश्मीर के नाम से जाना जाता है। हम उन्ही कश्यप ऋषि के वंशज है… हमारे अधिकांश पूर्वजों के कथनानुसार- हम लोग कश्मीर क्षेत्र में मुख्यत: केसर का उत्पादन व उसका व्यापार भी करते थे। एवं जड़ी बूटियो पर शोध कार्य भी करते थे….(वैद्य) जो लोग केसर का उत्पादन करते थे वे ‘केसरधन’ (कसौधन) कहलाए और जो केसर को ले जाकर अन्य क्षेत्रों में व्यापार करते थे वे ‘‘केसरवानी’’ कहलाये। ये दोनों वर्ग एक ही समुदाय के थे, परन्तु बाद में अपने को अलग-अलग मानने लगे। कसौधन कश्मीर क्षेत्र का समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग था , परन्तु कुछ कारणवश इन्हे कश्मीर से पलायन करना पड़ा….. लगभग 15- 16वीं शताब्दी में जम्मू कश्मीर में मुगल शासको के उत्पीड़न के कारण इन लोगो ने उसकी अधीन न रहकर वहाँ से पलायन करना उचित समझा…इसके बाद ये उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यो मे वस गये… कश्मीर से पलायन के बाद केसर का व्यापार समाप्त होने पर काँसे का व्यापार शुरु किया..
इस कार्यक्रम में कसौधन समाज समिति के अध्यक्ष आनंद नारायण कसौधन , महामंत्री सुरेश कसौधन, कोषाध्यक्ष राम नरेश कसौधन,अभिषेक कुमार गुप्ता ,कमलाप्रसाद कसौधन, सचिन कसौधन,आशीष , विजय , अमित , जय प्रकाश कसौधन ,सुरेश गुप्ता ,जगदीश गुप्ता सहित समाज के गणमान्य व्यक्ति व् इस समिति के मीडिया प्रभारी अभिषेक कुमार गुप्ता का सराहनीय योगदान रहा तमाम लोग उपस्थित रहे । मनोज पति त्रिपाठी ब्यूरो चीफ बहराइच , 8081466787 ,, हम हर पल आपके साथ ।
Prem Chauhan
Editor in ChiefUpdated Video
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ग्राम- सिलेटनगंज पोस्ट बलहा तहसील – थाना- नानपारा जिला बहराइच (उत्तर प्रदेश), मानवाधिकार कार्यकर्ता – जिला संयोजक मानवाधिकार जन निगरानी समिति बहराइच !
स्वतंत्र पत्रकार एवम् सोसल मीडिया के चर्चित सूचना अधिकार कार्यकर्ता – मनोज त्रिपाठी।