आगरा संवादाता अर्जुन रौतेला। न कोई जान सका, न कोई पार पा सका, हर लीला के पीछे छुपे महत्व को श्रीकृष्ण का कोई न कोई गूढ़ रहस्य छुपा। जिस नाग के नाम से संसार होता था भयभीत उसी का मान मर्दन कर कान्हा ने धर्म को दिलाई थी जीत। इसी संदेश को जन− जन तक पहुंचाते हुए श्रीकृष्ण लीला समिति के अन्तर्गत श्रीकृष्ण लीला शताब्दी समारोह के पांचवे दिन कालिदह लीला एवं डांडिया रास नृत्य का मंचन हुआ। लीला मंचन के कलाकारों के सशक्त अभिनय देख श्रद्धालु भाव विभाेर हो उठे।
वाटरवर्क्स चौराहा स्थित गौशाला में चल रही श्रीकृष्ण लीला में काली दह लीला मंचन से पूर्व मुख्य अतिथि समाज सेवी सुनील विकल और गजेंद्र शर्मा ने स्वरूपों की आरती उतारी। सभी का स्वागत समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने किया। लीला मंचन पर खेलन आयौ री, मेरौ बारो सौ कन्हैया भजन की जैसे ही गूंज उठी दर्शकदीर्घा में जय जय श्री राधे के जयघाेष लगने लगे। उधर मैया यशाेदा का अपने लाला के लिए किया गया रुदन हर किसी के नेत्रों को सजल कर रहा था। राधा विनोद लीला संस्थान, वृंदावन के लीला निर्देशक स्वामी श्रीराम शर्मा (निमाई) के निर्देशन में कलाकारों ने प्रभावशाली मंचन किया।
लीला मंचन में दिखाया गया कि भगवान श्रीकृष्ण यमुना तट पर ग्वालों के साथ गेंद खेल रहे हैं। खेलते-खेलते गेंद यमुना में चली जाती है। अब उसे गेंद लेने के लिए कौन जाए, इस पर बहस होती है। क्योंकि उसमें कालिया नाग रहता था। अंत में कान्हा ही यमुना में गेंद लेने कूद गए। काफी देर तक श्रीकृष्ण यमुना से नहीं निकले तो उनके सखाओं को चिंता हुई। थोड़ी देर में ब्रजवासी यमुना के तट पर एकत्र हो गए। माता यशोदा को पता चला तो वे रोती बिलखती हुई तट पर आईं। उनके रुदन को सुन कर सभी दर्शकों की आंखें अश्रु से भीग गईं। कुछ देर बाद कान्हा कालिया नाग के फन पर नृत्य करते हुए निकल आए। जिसे सभी में खुशी की लहर दौड़ गई। लीला मंचन में इसके अलावा वत्सासुर वध, वकासुर वध, अधासुर वध, धेनकासुर वध की लीलाओं का मंचन भी किया गया। पांचवे दिन के लीला मंचन समापन पर समिति के विजय रोहतगी, संजय गर्ग, अशोक गोयल, पार्षद मुरारी लाल गोयल, शेखर गोयल, कृष्ण कन्हैया अग्रवाल, बृजेश अग्रवाल, प्रभात रोहतगी, गिर्राज बंसल, बीजी अग्रवाल, संजीव गुप्ता, संजय, विष्णु अग्रवाल, मीडिया प्रभारी तनु गुप्ता आदि ने स्वरूपों की आरती उतारी।
फोटो, कैप्शन− बल्केश्वर गौशाला में चल रहे श्रीकृष्ण लीला शताब्दी समारोह में लीला का मंचन करते कलाकार।
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रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद।
सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद।।
मेहंदी का रंग प्राप्त करने के लिए उसको पत्थर पर पिसा जाता है, तब लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य जो जितना “दर्द अथवा कठिन कर्म” करता है, लोग उसी की तरफ आकर्षित होते हैं।