मां को समय देते हुए उनके अनुभव अवश्य लें : शिवम शर्मा

आगरा संवादाता अर्जुन रौतेला। आज यमुनापार फाउंड्री नगर, शोभानगर में स्थित विद्या इंटरनेशनल स्कूल में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मातृ दिवस मनाया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के स्वरूप के समक्ष दीप प्रज्वलित व माला पहनाकर स्कूल के प्रबंधक शिवम कुमार और प्रधानाचार्य डॉ. एके निगम ने की।


कार्यक्रम में विद्यार्थियों की माताओं को उनके द्वारा गृह कार्य करने के साथ ही बच्चों की शानदार परवरिश, शिक्षा, खेल, स्वास्थ, आदि के साथ विद्यालय भेजने वाली माताओं को सम्मानित किया, इसके साथ ही माताओं के मध्य कई प्रकार के खेल, नृत्य, गायन आदि प्रतियोगिताऐ भी कराई, जिसमें विजय हासिल करने वाली माताओं को उपहार देकर सम्मानित किया गया।

विद्या इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ कॉलेज के निदेशक शिवम शर्मा ने देश के राष्ट्रीय कवि पदम गौतम की पंक्तियों को बोलते हुए कहा कि
“मातृदिवस पर मां की जय के नारे गूंज रहे हैं,
संदेशों का लगा है तांता मां को पूज रहे हैं,
राहें तकती वो मैया दो मीठे बोल को तरसे,
रो – रो कर उस बूढ़ी मां के नयना सूज रहे हैं।।
उक्त पंक्तियों को सुन सभागार में उपस्थित सभी माताओं ने जोरदार तालियों से स्वीकारा कि वर्तमान में लोग केवल मोबाइल, अखबार आदि के द्वारा दिखावा अधिक कर रहे हैं, असल मायने में घर पर बैठी बूढ़ी मां से बोलने अथवा राजी खुशी लेने का समय ही नहीं हैं, लेकिन विद्या इंटरनेशनल स्कूल में आधुनिक शिक्षा के साथ ही संस्कारों की विशेष पाठशाला लगाई जाती है।
स्कूल के प्रधानाचार्य डॉ ऐ.के. निगम ने विद्यार्थियों की माताओं को संबोधित करते हुए कहा कि इस दुनिया में केवल मां ही ऐसा रिश्ता है, जिसके दिए हुए संस्कारों से जीवन में उजाला और अंधेरा आता है अत: सभी माताओं से आग्रह है कि समय समय पर विद्यालय में अपना अनुभव एवं सुविचार देती रहें, हमारा स्कूल कोशिश करेगा कि आपके द्वारा दिए गए सुझावों को स्कूल में लागू करें।
कार्यक्रम के अंत में हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षा में विद्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की माताओं को स्कूल प्रशासन द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया।

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  • अर्जुन रौतेला आगरा

    रंग लाती है हिना पत्थर से पिस जाने के बाद। सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरें खाने के बाद।। मेहंदी का रंग प्राप्त करने के लिए उसको पत्थर पर पिसा जाता है, तब लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य जो जितना "दर्द अथवा कठिन कर्म" करता है, लोग उसी की तरफ आकर्षित होते हैं।

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