टीबी रोगियों की सभी जांच निशुल्क हों : डीटीओ
जीएस मेडिकल कॉलेज में हुई कोर कमेटी की बैठक
•रेफरल बढ़ाने व क्षय रोगियों को पुष्टाहार दिलाने पर जोर
हापुड़: मंगलवार को जीएस मेडिकल कॉलेज में हुई कोर कमेटी की बैठक, जिसमें बताया गया है कि टीबी रोगियों की सभी जांच निशुल्क हों। उनसे किसी भी तरह का शुल्क न वसूल किया जाए। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी रोगियों को केवल क्लीनिकल डायग्नोसिस के आधार पर उपचार न दिया जाए, किसी लैब से उनकी जांच अवश्य कराई जाए। अधिक से अधिक क्षय रोगियों को खोजने के लिए ओपीडी के 10 प्रतिशत रोगियों की टीबी जांच अवश्य कराई जाए। यह बातें मंगलवार को जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. राजेश सिंह ने जीएस मेडिकल कॉलेज में कोर कमेटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहीं। उन्होंने जीएस मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से क्षय रोगियों को पुष्टाहार उपलब्ध कराने की भी अपील की। क्षय रोगियों को दवा के साथ-साथ पुष्टाहार की भी उतनी ही जरूरत होती है। उच्च प्रोटीन युक्त पुष्टाहार लेने से क्षय रोगी को रिकवरी में मदद मिलती है।
जिला क्षय रोग अधिकारी ने कहा – क्षय रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उन्हें दूसरे संक्रमण लगने का भी खतरा बढ़ जाता है, ऐसे में जरूरी है कि सभी क्षय रोगियों की शुगर एवं एचआईवी जांच अवश्य हो। शासन का लक्ष्य सभी क्षय रोगियों को हर तरह की जांच निशुल्क उपलब्ध कराना है। मेडिकल कॉलेज में जो क्षय रोगी उपचार ले रहे हैं, सभी को हर तरह की जांच निशुल्क उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए यदि लॉजिस्टिक्स की जरूरत होगी तो वह जिला क्षय रोग विभाग की ओर से उपलब्ध कराई जाएगी, लेकिन किसी भी सूरत में क्षय रोगी से जांच का शुल्क न वसूल किया जाए। कोर कमेटी की बैठक में कॉलेज के प्रधानाचार्य डा. प्रदीप गर्ग, रेस्पिरेटरी विभागाध्यक्ष डा. लविका लखटकिया, कम्यूनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. नितिन कुमार पाठक, ऑब्स एंड गायनी विभागाध्यक्ष डा. सुनीता सिंघल और सर्जरी विभागाध्यक्ष डा. मधुबाला उपस्थित रहीं।
जिला पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी ने बताया – कोर कमेटी में इस बात पर जोर दिया गया कि अधिक से अधिक क्षय रोगी खोजे जाएं। पल्मोनरी (फेफड़ों की) टीबी के मामले में रोगी की जल्दी पहचान और उपचार जरूरी है ताकि टीबी संक्रमण का प्रसार रोका जा सके। दरअसल फेफड़ों की टीबी सांस के जरिए फैलती है और रोगी के संपर्क में आने वालों को संक्रमण का खतरा रहता है। हालांकि उपचार शुरू होने के दो माह में यह खतरा नहीं के बराबर रह जाता है।
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