पुलिस स्मृति दिवस पर विशेष –
ये पुलिस ही है जो देश के अंदर कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपना सर्वस्व व प्राणो का बलिदान देती है ।
हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को मनाया जाता हैं नेशशनल पुलिस डे : डॉ उमेश शर्मा, चेयरमैन- उ.प्र.अपराध निरोधक समिति,लखनऊ
बिना पुलिस के सुरक्षित व सभ्य समाज की कल्पना नही की जा सकती, पुलिस ही हमारी हिम्मत है : डॉ उमेश शर्मा
आगरा,संजय साग़र। सन 1959 में चीन से सटी भारतीय सीमा की रक्षा में बलिदान देने वाले शहीद दस पुलिसकर्मियों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को “नेशनल पुलिस डे यानी पुलिस स्मृति दिवस” मनाया जाता है।उ.प्र. अपराध निरोधक समिति लखनऊ के चेयरमैन डॉ उमेश शर्मा ने अपने वक्तव्य में बताया कि हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता हैं। देश की सीमा की रक्षा में लगे सैन्य बलों के बलिदान की आपने कई कहानियां सुनी होंगी लेकिन हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य और बलिदान का इतिहास भी किसी से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही साल 1959 में हुआ था, जब पुलिसकर्मी पीठ दिखाने के बजाय चीनी सैनिकों की गोलियां सीने पर खाकर शहीद हुए। चीन के साथ देश की सीमा की रक्षा करते हुए जो बलिदान दिया था, उसकी याद में हर साल पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। बात 21 अक्टूबर सन 1959 की है। 10 पुलिसकर्मियों ने जब अपना बलिदान दिया था। तब तिब्बत के साथ भारत की 2,500 मील लंबी सीमा की निगरानी की जिम्मेदारी भारत के पुलिसकर्मियों की थी। इस घटना से एक दिन पहले 20 अक्टूबर, 1959 को तीसरी बटालियन की एक कंपनी को उत्तर पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स नाम के स्थान पर तैनात किया गया था। इस कंपनी को 3 टुकड़ियों में बांटकर सीमा सुरक्षा की बागडोर दी गई थी। लाइन ऑफ कंट्रोल में ये जवान गश्त के लिए निकले। आगे गई दो टुकड़ी के सदस्य उस दिन दोपहर बाद तक लौट आए लेकिन तीसरी टुकड़ी के सदस्य नहीं लौटे। उस टुकड़ी में दो पुलिस कॉन्स्टेबल और एक पोर्टर शामिल थे। अगले दिन फिर सभी जवानों को इकट्ठा किया गया और गुमशुदा लोगों की तलाश के लिए एक टुकड़ी का गठन किया गया।
श्री शर्मा ने कहा कि गुमशुदा हो गए पुलिसकर्मियों की तलाश में तत्कालीन डीसीआईओ करम सिंह के नतृत्व में एक टुकड़ी 21अक्टूबर 2018 को सीमा के लिए निकली। इस टुकड़ी में करीब 20 पुलिसकर्मी शामिल थे। करम सिंह घोड़े पर सवार थे, जबकि बाकी पुलिसकर्मी पैदल थे। पैदल सैनिकों को 3 टुकड़ियों में बांट दिया गया था। तभी दोपहर के समय चीन के सैनिकों ने एक पहाड़ी से गोलियां चलाना और ग्रेनेड्स फेंकना शुरू कर दिया। अपने साथियों की तलाश में निकली ये टुकड़ियां खुद की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं करके गई थीं, इसलिए ज्यादातर सैनिक घायल हो गए। तब उस हमले में देश 10 वीर पुलिसकर्मी शहीद हो गए जबकि सात अन्य बुरी तरह घायल हो गए। यही नहीं, इन सातों घायल पुलिसकर्मियों को चीनी सैनिक बंदी बनाकर ले गए जबकि बाकी अन्य पुलिसकर्मी वहां से निकलने में कामयाब रहे। 13 नवंबर, 1959 को शहीद हुए दस पुलिसकर्मियों का शव चीनी सैनिकों ने लौटा दिया। उन पुलिसकर्मियों का अंतिम संस्कार हॉट स्प्रिंग्स में पूरे पुलिस सम्मान के साथ हुआ। उन्हीं हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को “नैशनल पुलिस डे यानी पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता हैं।
डॉ शर्मा ने पिछले कोरोना काल में पुलिस के उस मानवीय चेहरे का जिक्र किया जिसमें पुलिस वालों ने अपने प्राणो की बाजी लगाकर अपनी कानून व्यवस्था संभालने के साथ निःस्वार्थ मानवसेवा की, जो सदैव पुलिस के इतिहास में अविस्मरणीय व स्वर्णिम अक्षरों में पुलिस की सर्वश्रेष्ठ सेवाओ में होगा । ये उस समय की पुलिस सेवा है जब जनप्रतिनिधियों एवं तथाकथित बड़े समाजसेवियों ने मौत के तांडव के डर से मुह छिपा लिया था और पुलिस इंसानियत के वो फर्ज़ निभा रही थी, जिसके कर्ज को हम कभी चुका नही सकते। आज विडंबना ये है कि कुछ गिने चुने लोगों की वजह से, समूचे पुलिस विभाग को बदनाम किया जाता है । अगर पुलिस न होती तो समाज की कल्पना करिए , बिना पुलिस के समाज की कल्पना मात्र करने से रूह काँप उठती है। जो लोग पूरे महकमे पर आरोप लगाते हैं, वो कभी पुलिस की तरह समाज के लिए बलिदान दें,ये पुलिस ही है जो देश के अंदर कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपना सर्वस्व व प्राणो का बलिदान देती है । पुलिस सभी को चाहिए लेकिन इसके साथ भावना शायद ही कोई जोड़ता हो , इसके अंदर के दर्द को महसूस करता हो, शर्म आती है ऐसे लोगों और नेताओ पर जिनको रौब के लिए , काम के लिए पुलिस चाहिए लेकिन सहयोग के नाम पर ऊल जलूल बातें बनाकर पल्ला झाड लेते हैं । आज मेरा एक बड़ा प्रश्न उन नेताओं जनप्रतिनिधियों से होगा,जो दुहाई देते हैं कानून व्यवस्था के लचीलेपन की, वो बताएं आज के दिन कितने शहीद पुलिसकर्मियों या दिवंगत या जिनहोने अच्छे काम किए हैं उनके यहाँ गए हैं या उनके स्मृति के अवसर पर शरीक हुये हैं, अगर नही तो , उनको कोई हक नही जो ऊल जलूल बकें । मैं उन सभी शहीद, कोरोनाकाल के शहीद को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुये व आज भी हिम्मत से अपराध से लड़ रहे पुलिस अधिकारी या कर्मियों के जज्बे को नमन करता हु , जो हमें सुरक्शित समाज भयमुक्त समाज के लिए प्रयासरत हैं । गर्व से कहता हू कि पुलिस है तो समाज कि कल्पना है । हम सभी को भयमुक्त समाज के निर्माण और अप्रराध को कम करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सहयोग देना चाहिए, आखिर पुलिस वाले भी तो हम सभी के परिवार से ही तो आते हैं, पुलिस शत्रु , नही मित्र व रक्षक है, जय हिन्द ॥
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