
जीआईसी सरकार का आभार मानता है, अब यदि गुजरातवासी गुड गवर्नेंस के लाभार्थी बनें तो सूचना आयुक्तों का धन्यवाद
एक वर्ष पूर्व गुजरात सूचना आयोग, केंद्रीय सूचना आयुक्त, सरकार, मुख्यमंत्री और सिविल सोसायटी ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रभावी अमल हेतु संवाद संगोष्ठी का आयोजन किया था। अब ज्ञात हुआ है कि सरकार ने राज्य सूचना आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर परिपत्र जारी किया है।
गुजरात की समस्त प्रशासनिक शक्तियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने सरकारी रिकॉर्ड को व्यवस्थित रूप से वर्गीकृत करें, अनुक्रमणिका बनाएँ, उचित संरक्षण करें और वेबसाइट पर सार्वजनिक करें।
सूचना मांगने वालों को माँगी गई सूचना पाँच पृष्ठों तक निःशुल्क दी जाए।
यदि कोई सूचना मांगने वाला ईमेल या ऑनलाइन माध्यम से सूचना चाहता हो तो सूचना अधिकारियों को उस सूचना की फोटो लेकर भेजनी होगी; उसे भौतिक रूप से देने की आवश्यकता नहीं है।
यदि कोई आवेदक आरटीआई एक्ट के तहत रिकॉर्ड निरीक्षण की माँग करे तो उसे प्रदान की जाने वाली जानकारी की फोटो लेने की व्यवस्था करनी होगी और पोर्टेबल स्टोरेज डिवाइस में ले जाने की अनुमति भी देनी होगी। इसे भी भौतिक रूप में देना जरूरी नहीं।
प्रथम अपील अधिकारी जब प्रथम अपील की सुनवाई करे और निर्णय दे, तब उसे अपील में प्रस्तुत विवरण व कारणों को ध्यान में रखकर विस्तृत आदेश करना होगा। सूचना अधिकारी उस आदेश का पालन करे यह सुनिश्चित करना भी प्रथम अपील अधिकारी की ज़िम्मेदारी होगी।
प्रो-एक्टिव डिस्क्लोज़र सूचना – पीएडी
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4(1)(b) के अनुसार सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों के सूचना अधिकारियों एवं उनके मुख्य अधिकारियों को 2005 से लागू कानून की शर्तों के अनुसार जानकारी वेबसाइट पर प्रकाशित करनी थी। परन्तु यह अब तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हुआ है, जिसकी कई शिकायतें गुजरात राज्य सूचना आयोग को प्राप्त हुई हैं। इस मुद्दे पर माननीय न्यायालयों में अनेक मामले दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों व राज्य सूचना आयोग के आयुक्तों को निगरानी हेतु निर्देश दिए हैं।
राज्य सूचना आयुक्त गुड गवर्नेंस हेतु लंबे समय से गंभीर रूप से सक्रिय हैं, ऐसा उनकी प्रत्यक्ष मुलाकातों से स्पष्ट होता है। लेकिन यह विवादित है कि सार्वजनिक प्राधिकरण इन निर्देशों को वास्तव में अमल में ला रहे हैं या नहीं।
2005 में जब आरटीआई अधिनियम आम जनता को समर्पित किया गया था तब वह लोकतंत्र की धड़कन के समान क्रांतिकारी कदम था। अब 2025 में गुजरात सरकार द्वारा इसी तरह की क्रांतिकारी घोषणा का पुनरावर्तन सराहनीय व स्वागत योग्य है।
राज्य सूचना आयोग सरकार का आभार मानता है, लेकिन अब इस कानून के सुचारू अमल की ज़िम्मेदारी राज्य सूचना आयोग के आयुक्तों की ही है।
यदि मूल कानून व इसकी शर्तों के अनुसार प्रो-एक्टिव सूचना सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा मैन्युअल हार्ड कॉपी में एवं वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाए तो जनता को छोटी-छोटी आरटीआई अर्जियाँ देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
गुजरात सरकार ने अवैध निर्माण व अतिक्रमण संबंधित जानकारी, विभिन्न अनुमति/परमिट/प्राधिकृत मंज़ूरी, नागरिकों की अर्ज़ी या शिकायत की प्रगति की जानकारी आवेदक को संदेश या ईमेल के माध्यम से स्वतः देने की व्यवस्था हेतु निर्देश दिए हैं।
सरकार व राज्य सूचना आयोग का यह दृष्टिकोण, आदेश सराहनीय, प्रशंसनीय व स्वागत योग्य हैं।
लेकिन — यदि आरटीआई अधिनियम 2005 और हाल की गुजरात सरकार की घोषणाओं का वास्तव में क्रियान्वयन होता है, तो गुजरात की 7 करोड़ जनता लाभार्थी बनेगी, और गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त व उनकी टीम को जनता आभारपूर्वक याद रखेगी। गुजरातवासी ‘गुड गवर्नेंस’ की सराहना अवश्य करेंगे।
वही दिपक पटेल ने कहा कि
गुजरात राज्य सूचना आयोग द्वारा सरकार को यह सिफारिश की जाती है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का प्रभावी क्रियान्वयन करे। इसके अंतर्गत यह आदेश दिया गया है कि किसी भी आवेदनकर्ता को पाँच पृष्ठों तक की जानकारी निशुल्क दी जाए। यह बहुत अच्छा निर्णय है, क्योंकि अक्सर एक या दो पृष्ठों की जानकारी के लिए भी ₹25 या ₹30 डाक शुल्क लिया जाता था, जिससे जानकारी सोने से भी महंगी पड़ती थी। इसलिए यह निर्णय स्वागत योग्य है और इससे सरकार के भी बहुत से पैसे बचेंगे।
RTI एक्ट के अनुसार देश की सुरक्षा या संप्रभुता को खतरा हो ऐसी जानकारी प्रतिबंधित है, लेकिन यदि मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हो या नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के हनन का हो, तो वह जानकारी प्रतिबंधित नहीं मानी जाती। कई मामलों में राज्य सूचना आयोग के माननीय आयुक्त अपने आदेश में लिखते हैं कि दिए जाने योग्य जानकारी दी जाए। लेकिन आयुक्त स्पष्ट आदेश क्यों नहीं देते, यह विचारणीय प्रश्न है।
सरकार के नए परिपत्र में भी “दिए जाने योग्य जानकारी” प्रदान करने का उल्लेख है। इसका अर्थ क्या है? सूरत के नगरसेवकों ने नगर आयुक्त बहन श्रीमती शालिनी अग्रवाल को शिकायत की है कि सूरत महानगर पालिका की वेबसाइट पर पुरानी जानकारी डाली गई है। कौन अधिकारी कहां कार्यरत है, यह खुद नगरसेवकों को भी नहीं पता।
सूरत शहर — सिल्क सिटी, डायमंड सिटी, ब्रिज सिटी, गुजरात और देश का मिनी भारत — सबसे धनी शहरों में से एक है। यदि सूरत महानगर पालिका अपनी वेबसाइट को अपडेट नहीं करती, तो इसका मतलब यह हुआ कि नगर निकाय स्वयं RTI की धारा 4 के तहत दी जानी वाली प्रो-ऐक्टिव सूचना छुपा रहा है।
मैं, दिपक पटेल, सेवानिवृत्त शिक्षक, RTI एक्ट के अंतर्गत आवेदन करता हूँ। मैंने मांगी गई जानकारी के लिए निर्धारित राशि भी जमा कर दी है, फिर भी अपडेटेड प्रो-ऐक्टिव सूचना प्रदान नहीं की गई।
“दिए जाने योग्य जानकारी” का क्या अर्थ है? RTI कानून की मुख्य धाराओं का पालन ही नहीं हो रहा। सूरत महानगर पालिका के इंजीनियर और डॉक्टर तो अत्यंत पढ़े-लिखे प्रतीत होते हैं — डिग्रियाँ और पदनाम देखकर यही लगता है। फिर भी जब उन्हें अपीलीय अधिकारी के रूप में कार्य करना होता है, तो क्या वे अपने आदेश का पालन सुनिश्चित करते हैं?
अब तो अपीलीय अधिकारी, RTI की धज्जियाँ उड़ाते हुए, कानून के विरुद्ध प्रथम अपील को स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर रहे हैं। जिन सूचनाओं की मांग ही नहीं की गई, उनके लिए जानकारी अधिकारी पैसा वसूल कर रहे हैं।
शर्मनाक बात यह है कि सूरत महानगर पालिका के अपीलीय अधिकारी आपस में सांठगांठ कर, समूह में मिलकर, कानून की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। यदि गुजरात सरकार और राज्य सूचना आयोग के आदेशों का पालन होता, तो यह स्थिति नहीं होती।
प्रथम अपीलीय अधिकारी अगर कानून के अनुसार कार्य करें और अपने निर्णयों का पालन करवाएँ, तो अच्छा हो। लेकिन सूरत महानगर पालिका के सूचना अधिकारी गैरजिम्मेदाराना जवाब देते हैं, आवेदनकर्ता को जानकारी नहीं देते। अपीलीय अधिकारी तो अपने आदेश में ही धृतराष्ट्र नीति अपनाते हुए प्रथम अपील कार्यालय में ही मामले को दफन कर देते हैं। इससे सरकार और राज्य सूचना आयोग पर अनावश्यक भार बढ़ता है।
इस समय गुजरात सरकार द्वारा जो निर्देश जारी किए गए हैं, वे स्वागत योग्य, सराहनीय और प्रशंसनीय हैं।
सूरत महानगर पालिका के ये गैर-जवाबदेह सूचना अधिकारी, जिन्होंने शपथ ली है कि वे संविधान की धारा 51 का पालन करेंगे और ईमानदारी से काम करेंगे — क्या वे वास्तव में ऐसा करेंगे?
यदि सूरत के नगरसेवकों को ही सही जानकारी नहीं दी जाती, तो क्या श्री अरविंद राणा जी (नगर आयुक्त), जिला कलेक्टर, अन्य विधायकगण, महापौर और सरकार इस कानून का सही पुनः क्रियान्वयन करवाएंगे? या फिर वे केवल RTI कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को ब्लैकमेलर या उपद्रवी कहकर गुजरातियों को बदनाम करते रहेंगे?
हां, एक बात और याद आ गई — सूरत महानगर पालिका के महापौर कार्यालय से दिन-दहाड़े लगभग 10 से 15 लोग CCTV कैमरों की उपस्थिति में ही पालिका की डायरियाँ चुरा ले गए थे। उसका क्या हुआ?
सूरत महानगर पालिका एक सेवा प्रदाता निकाय है — कोई मोगल साम्राज्य नहीं जो केवल लाभ और चंदा जमा करने के लिए हो। बात सिर्फ सूरत की नहीं है — RTI एक्ट रिफॉर्म मूवमेंट इंडिया के 2000 से अधिक जागरूक सदस्य गुजरातियों के दिलों की यही व्यथा साझा करते हैं
टी यन न्यूज 24 आवाज जुर्मके खिलाफ सूरत से संवाददाता राजेंद्र तिवारी के साथ नरेंद्र प्रताप सिंह कि खास रिपोर्ट स्थानीय प्रेस नोट और विज्ञापन के लिए संपर्क करें 9879855419





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