*आज का पंचांग*
* दिनांक – 11 अगस्त 2022*
* दिन – गुरुवार*
* विक्रम संवत् – 2079*
* शक संवत् – 1944*
* अयन – दक्षिणायन*
* ऋतु – वर्षा*
* मास – श्रावण*
* पक्ष – शुक्ल*
* तिथि – चतुर्दशी सुबह 10:38 तक तत्पश्चात पूर्णिमा*
* नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा सुबह 06:53 तक तत्पश्चात श्रवण*
* योग – आयुष्मान अपरान्ह 03:32 तक तत्पश्चात सौभाग्य*
* राहु काल – अपरान्ह 02:22 से 04:00 तक*
* भद्रा काल : सुबह 10:38 से रात्रि 08:52*
* सूर्योदय – 06:14*
* सूर्यास्त – 07:15*
* दिशा शूल – दक्षिण दिशा में*
* ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:47 से 05:30 तक*
* निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:23 से 01:07 तक*
* व्रत पर्व विवरण – वैदिक रक्षाबंधन, राखी पूर्णिमा*
* विशेष – चतुर्दशी, पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
* रक्षा बंधन : 11 अगस्त 2022🔹*
*पूर्णिमा 11 अगस्त सुबह 10:38 से 12 अगस्त सुबह 07:05 तक*
🔹 *रक्षाबंधन : संकल्पशक्ति का प्रतीक*
*🔹रक्षासूत्र बांधने का मंन्त्र:*
*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।*
*तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।*
🔹 *रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘मेरा भाई भगवत्प्रेमी बनें। जैसे शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आयें। मेरा भाई धीर-गम्भीर हो। मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें।’ भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बनें।’*
🔹 *इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा कार्यों का विनाशक है। इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है।*
🔹 *रक्षाबंधन के पर्व पर बहन भाई को आयु, आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि की भावना से राखी बाँधती है। अपना उद्देश्य ऊँचा बनाने का संकल्प लेकर ब्राह्मण लोग जनेऊ बदलते हैं। (भविष्य पुराण)*
🔹 *समुद्र का तूफानी स्वभाव श्रावणी पूनम के बाद शांत होने लगता है। इससे जो समुद्री व्यापार करते हैं, वे नारियल फोड़ते हैं।*
*🔹आरती को कैसे व कितनी बार घुमायें ?*🔹
* जो भी देव हैं उनका एक बीजमन्त्र होता है। आरती करते हैं तो उनके बीजमन्त्र के अनुसार आकृति बनाते हैं ताकि उन देव कि ऊर्जा, स्वभाव हम में आयें और उनकी आभा में हमारी आभा का तालमेल हो और हमारी आभा देवत्व को उपलब्ध हो। इसलिए देवता, सद्गुरु, भगवान् कि आरती की जाती है।*
*🔹जिस देवता का जो बीजमन्त्र होता है, आरती की थाली से उस प्रकार कि आकृति बना के आरती करते हैं तो ज्यादा लाभ होता है, जैसे आप रामजी कि आरती करते हैं तो उनका ‘रां’ बीजमन्त्र है तो ‘रां’ शब्द आरती में बनाना ज्यादा लाभ करेगा। देवी की आरती करते हैं तो सरस्वतीजी का ‘ऐं’ अथवा लक्ष्मीजी का ‘श्रीं’ बना दें। गणपतिजी का बीजमंत्र है ‘गं’ तो थाली से उस प्रकार कि आकृति बना दें। अब कौन-से देव का कौन-सा बीजमन्त्र है यह पता नहीं है तो सब बीजमन्त्रो का एक मुख्य बीजमन्त्र है ‘ॐ’कार । आरती घुमाते–घुमाते आप ॐकार बना दें। सभी देवी-देवताओं के अंदर जो परब्रह्म-परमात्मा है उसकी स्वाभाविक ध्वनि ॐ है।*
* तो ‘ॐ’ बनायें अथवा देव के चरणों से घुटनों तक ( ४ बार) फिर नाभि के सामने (२ बार) फिर मुखारविंद के सामने (१ बार) फिर एक साथ सभी अंगो में (७ बार) आरती घुमाये। इससे देव के गुण व स्वभाव आरती घुमानेवाले के स्वभाव में थोड़े थोड़े आने लगते हैं।*
* आरती का वैज्ञानिक आधार*
* अभी तो विज्ञानी भी दंग रह गये कि भारत की इस पूजा-पद्धति से कितना सारा लाभ होता है ! उनको भी आश्चर्यकारक परिणाम प्राप्त हुए। अब विज्ञानी बोलते हैं कि आरती करने से अगर विशेष व्यक्ति है तो उसकी विशेष ओरा और सामान्य व्यक्ति कि ओरा एकाकार होने लगती है। वैज्ञानिकों की दृष्टि में केवल आभा है तो भी धन्यवाद ! किन्तु आभा के साथ-साथ विचार भी समान होते हैं, साथ ही हमारे और सामनेवाले के शरीर से निकलनेवाली तरंगो का विपरीत स्वभाव मिटकर हमारे जीवन में प्रकाश का भाव पैदा होता है।*
* जैसे घी, पेट्रोल और फूलों आदि की अपनी अलग-अलग गंध होती है, ऐसे ही हर मनुष्य की अपनी आभा होती है। अभी तो किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा उस आभा का फोटो भी लिया जा सकता है। जब देवता के आगे आरती करते हैं तो उनकी आभा को अपनी आभा के साथ एकाकार करने की प्रक्रिया में दीपक उत्प्रेरक (catalytic agent) का काम करता है।*
* आयु-आरोग्य प्राप्ति व शत्रुवृद्धि शमन हेतु
* आरती करने से इतने सारे लाभ होते हैं और आरती देखने से भी लाभ होता है : आरती के दर्शन करने से आपके ऊपर शत्रुओं की दाल नही गलती। दीपज्योती आयु-आरोग्य प्रदायक और शत्रुओ कि वृद्धि का शमन करनेवाली है। पड़ोसी या प्रतिस्पर्धी एक-दूसरे के इतने शत्रु नहीं होते जितने मनुष्य जीवन में काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु हैं। तो आरती के दर्शन करने से शत्रुओ कि वृद्धि का शमन होता।
*शास्त्रों के अनुसार जो धूप व आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती को लेता है वह अपनी अनेक पीढ़ियों का उद्धार करता है तथा भगवान विष्णु के परम पद को प्राप्त होता है।*
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