ब्रेल लुइस (4 जनवरी) के जन्मदिवस पर विशेष अंधेरी जिंदगी को रोशन कर रही है ब्रेल लिपि की किताबें

ब्रेल लुइस (4 जनवरी) के जन्मदिवस पर विशेष

अंधेरी जिंदगी को रोशन कर रही है ब्रेल लिपि की किताबें

2006 में धनौली में स्थित राधास्वामी दृष्टिबाधितार्थ संस्थान (आगरा आवासीय दृष्टिबाधित विद्यालय) की स्थापना स्वामी प्रताप सिंह बघेल व राधा बघेल दंपत्ति ने की |
इस विद्यालय में ब्रेल लिपि का पुस्तकालय है, जिसमें नवीन पाठ्यक्रम कहानी उपन्यास, नाटक ,कंप्यूटर, खेल रामचरितमानस आदि सैकड़ों पुस्तकें ब्रेल लिपि में मौजूद हैं,प्रत्येक माह पत्रिकाएं भी आ रही हैं|
32 बच्चे ले रहे हैं शिक्षा वर्तमान समय में 32 छात्र एवं छात्राएं शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं यहां गोरखपुर, इलाहाबाद,मैनपुरी, फिरोजाबाद,मथुरा,शिकोहाबाद, एटा मिर्जापुर,अलीगढ़, हाथरस, आगरा के बच्चे भी हैं| यहां 1 से लेकर 12 तक के छात्र एवं छात्राओं को ब्रेल लिपि के माध्यम से शिक्षा दी जाती है, प्रधानाचार्य फिरोज आलम बताते हैं कि शुरुआत में नेत्रहीनों को यहां दाखिले के बाद ओलम सिखाई जाती है, ओलम में निपुण होने के बाद ऐसे दृष्टिबाधित ब्रेल लिपि की किताबों के सहारे अक्षरों को पहचान कर बोलना सीखते हैं ओलम के बाद चिन्ह और गणितीय शब्दों का ज्ञान कराने के बाद सभी विषयों का अध्ययन कराया जाता है इसके साथ साथ कंप्यूटर प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे छात्र छात्राएं आत्मनिर्भर होकर सफल जीवन व्यतीत करते हैं प्रधानाचार्य फिरोज आलम बताते हैं कि यहां के कई छात्र-छात्राओं की सरकारी पद पर नौकरी लग चुकी है जैसे कि रेलवे,बैंक, अध्यापक आदि विभाग में मौजूद है|
4 जनवरी को हर साल विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है। दुनियाभर में दृष्टिबाधितों के लिए ये दिन बहुत खास है। ब्रेल दिवस लुईस ब्रेल नाम के शख्स के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है। लुईस ब्रेल एक आविष्कारक हैं, जिन्होंने ब्रेल लिपि का आविष्कार किया था। ब्रेल लिपि एक भाषा है, जिसका उपयोग आंखों से देख न पाने वाले लोग लिखने और पढ़ने के लिए करते हैं। जो लोग जन्मजात या किसी कारण वश अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं, उनके लिए समाज में अन्य लोगों के बराबर खड़े होने, उन्हें पढ़ाई से वंचित न होना पड़े और वह अपनी शारीरिक कमी के बाद भी आत्मनिर्भर बन सकें, इसके लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करके लुईस ब्रेल दुनियाभर के दृष्टिबाधितों के मसीहा बन गए। हालांकि जब वह जीवित थे, तब उनके काम को सम्मान नहीं मिला, लेकिन बाद में विश्व ब्रेल दिवस की शुरुआत उनके ही जन्मदिन पर करके लुईस ब्रेल को सम्मान दिया गया।

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