*ऐ! सुन मेरे रहनुमा, ऐ! सुन मेरे परवरदिगार*
*बख्श हम पर तू अपनी रहनुमाई, करा चैन-ए-अमन का दीदार*
*साहित्य साधिका समिति एवं संस्थान संगम के तत्वावधान में डॉ. ममता भारती की काव्य-कृति ‘सुन मेरे रहनुमा’ का गणमान्य साहित्यकारों ने यूथ हॉस्टल में किया विमोचन*
*लेखिका ने छोटी सी काव्य-कृति में भर दिया है संसार का यहां-वहां बिखरा दर्द: रमा वर्मा ‘श्याम’*
*कवयित्री ने जगाया विश्वास कि रहनुमा की पनाहों में जो होगा, अच्छा ही होगा: डॉ. सुषमा सिंह*
*इन कविताओं में जिंदगी की धड़कन, भावों का सैलाब, अस्तित्व का बोध और स्वयं को पाने की छटपटाहट है: डॉ. नीलम भटनागर*
आगरा। साहित्य साधिका समिति एवं संस्थान संगम के संयुक्त तत्वावधान में निखिल पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित डॉ. ममता भारती की 51 कविताओं के प्रथम काव्य-संग्रह ‘सुन मेरे रहनुमा’ का विमोचन मंगलवार को यूथ हॉस्टल में आगरा के गणमान्य साहित्यकारों द्वारा किया गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री की सुपुत्री डॉ. सलोनी बघेल ने मुख्य अतिथि के रूप में दीप जलाकर समारोह का विधिवत शुभारंभ किया।
साहित्य साधिका समिति की संस्थापक श्रीमती रमा वर्मा ‘श्याम’ ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि लेखिका ने अपनी छोटी सी काव्य-कृति में संसार का यहां-वहां बिखरा दर्द भर दिया है। उनकी कलम सरल व सहज शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कहने की क्षमता रखती है। एक बानगी देखिए- ” बेबसी, लाचारी और मजबूरी/ और क्या-क्या बताएं साहब/ यही वो तीन शब्द हैं/ जो हमसे करवाते हैं मजदूरी..”
आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह ने कहा कि इस संग्रह के माध्यम से रचनाकार ने नारी अस्मिता की पताका फहराई है। हिम्मत की रोशनी दिखाई है और यह विश्वास जगाया है कि अपने रहनुमा की पनाहों में जो होगा, अच्छा ही होगा।
वरिष्ठ समीक्षक डॉ. नीलम भटनागर ने कहा कि ‘सुन मेरे रहनुमा’ की कविताओं में जिंदगी की धड़कन है, भावों का सैलाब है, अस्तित्व का बोध है और स्वयं को पाने की छटपटाहट है।
रचनाकार डॉ. ममता भारती ने अपनी माताजी श्रीमती सुशीला देवी और ईएमई 509 आर्मी बेस वर्कशॉप से रिटायर्ड पिताजी श्री चंद्र प्रकाश वरुण जी को पुस्तक समर्पित करते हुए अपनी भावनाओं को यूं व्यक्त किया-
” ऐ! सुन मेरे रहनुमा, ऐ! सुन मेरे परवरदिगार।बख्श हम पर तू अपनी रहनुमाई, करा चैन-ए-अमन का दीदार..”
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेंद्र मिलन ने कहा कि इन कविताओं में सत्य, निष्ठा, धर्म-कर्म और चिंतन-मनन के अतिरिक्त जीवन के यथार्थ को भी सहेजा गया है। एक बानगी देखिए- ” मैं बाल मजदूर हूं/ बेबस और मजबूर हूं/ बिकेंगे जब माटी के ये बरतन/ जलेगा चूल्हा तब, मेरे घर-आंगन..”
विशिष्ट अतिथि और साहित्य भूषण से सम्मानित साहित्यकार सुशील सरित ने कहा कि यह कविता-संग्रह जीवन के सहज रंगों के साथ अध्यात्म की किरणों का उजागर रूप है।
विशिष्ट अतिथि अशोक अश्रु ने कहा कि यह संग्रह कविता की कल कल का निनाद भी है और काव्य-मनीषियों के मन को तृप्ति देने वाला शीतल सलिल भी।
विशिष्ट अतिथि और बीडी जैन कन्या महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शिखा श्रीधर, रचनाकार की बड़ी बहन अनीता भारती और भाई डॉ. सतेद्र वरुण ने भी उनकी रचना धर्मिता को सराहा।
समारोह का संचालन यशोधरा यादव ‘यशो’ ने किया। कार्यक्रम-संयोजक वीरेंद्र सिंह ने आभार व्यक्त किया।
शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ, राज बहादुर सिंह राज, कमला सैनी, माला गुप्ता, रमा रश्मि, पूनम वार्ष्णेय, पूनम तिवारी, रेखा गौतम और परमानंद शर्मा सहित शहर के तमाम साहित्यकार शामिल रहे।
*शीर्षकों से बनाई कविता*
रचनाकार के जीवनसाथी वीरेंद्र सिंह ने विमोचित कृति की कविताओं के शीर्षकों को जोड़कर अनूठे काव्यात्मक अंदाज में शुभकामना संदेश देकर सबका दिल जीत लिया। एक बानगी देखिए- ‘सावन के महीने’ में ली है संग तेरे, हमने ‘प्यार की कसम’। तेरी कलम यूं ही चलती रहे अनवरत, मेरे हमराही! मेरे हमदम..
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