सबसे पहले होती है उनकी शादी, फिर शुरू होता है शादियों का सिलसिला

पहले उनकी होती है शादी, उसके बाद शुरुआत होता है शादियों का सिलसिला ।

परंपरा भारतवर्ष की, इतिहास सनातन का, लुप्त होती संस्कृति गाथा, ऑनलाइन का जमाना, लुप्त कर रहा हमारा बचपन और हमारा इतिहास एवं हमारी संस्कृति ।

ऑनलाइन शॉपिंग का इस्तेमाल करना हमारी संस्कृति के लिए अत्यंत घातक साबित हो रहा है ।

दुकानदार और दुकान पर आए हुए ग्राहकों के बीच संबंध खत्म होते जा रहे हैं ।

पुरानी संस्कृतियों को करने के लिए सार्वजनिक चंदे की आवश्यकता होती है आप चंदा ऑनलाइन वाले तो नहीं देंगे ।

ऑफलाइन बालों पर आम जनमानस जाता नहीं तो फिर चंदा कहां से आए…?

और कोई भी संस्कृत कार्यक्रम कोई भी हमारी सांस्कृतिक परंपरा किसी भी धर्म या मजहब की बिना सामाजिक चंदे के अधूरी रहती है ।

 

ठीक उसी तरह आज का यह महत्वपूर्ण त्यौहार जहां झेझी ,टेसू का यह सनातनी बच्चों से शुरुआत होकर जीवन की शुरुआत करने तक का सफर आज लुप्त होने की पगार पर है ।

आपको बताते चलें कि टैशु झेझीं का यह खेल हम और हमारे पूर्वज लगातार सदियों से अपनी परंपरागत खेलने चले आ रहे हैं ।

पहले का जमाना यह था की टैशु झेझीं को लेकर अपने घर गांव मोहल्ले में जाकर परंपरागत टैशु झेझीं के गीत गाकर इस पर्व को नवरात्रि के दशहरे से लेकर पूर्णमासी तक खेला जाता था और इसके बदले में टैशु झेझीं लेकर घर-घर मोहल्ले मोहल्ले खेलने वाले बच्चों को गेहूं चावल बाजार एवं अन्य ने व पैसे भी देकर उनका उत्साह बढ़ाया जाता था और इस परंपरा के लिए हर एक व्यक्ति हर एक धर्म मजहब का आगे रहता था ।

लेकिन आज के दौर में यह सब महज एक लुप्त परंपरा ही नजर आ रही है ।

टैशु झेझीं के के शहर एवं मुख्य कस्बा में छोटे-छोटे बाजार भी दिखाई दे रहे हैं लेकिन इतना महत्व नजर नहीं आ रहा जब हमारे दौर में इतना हुआ करता था ।

पहले की अपेक्षा इस बार टैशु झेझीं की भिन्न-भिन्न एवं अद्भुत कारीगरी के साथ सजा सवारे जाते हैं ।

लेकिन फिर भी पता नहीं कि हमारी संस्कृति के लिए हमारे मौजूद पूर्वज एवं हमारे अभिभावक क्यों नहीं बच्चों के बीच अपनी पुरानी संस्कृति का पाठ पढ़ाते ।

समय के अनुसार आधुनिकता भी अनिवार्य है लेकिन अपनी संस्कृति को भूल जाना यह अनुचित है और यह सब धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है ।

आज के समय पर हस्तकला की महत्वाकांक्षा सिर्फ इंपोर्ट एक्सपोर्ट में ही नजर आ रही है ।

कुम्हार के यहां आज भी सन्नाटा फैला हुआ है ।

दीपावली के दौर में महीना पहले दीपावली के लिए दिए की तैयारी होने लगती थी और आज का यह हड़ताल हो गया है की गिने चुने कुम्हार अपनी परंपरागत काम कर रहे हैं और वह भी बेचारे अपने ग्राहकों के लिए बेबसी से इंतजार कर रहे हैं ।

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gc goyal rajan
  • Editor In Chief TN NEWS 24

    बदलते वक्त का, बदलते भारत का, आज के हर युवा पीढ़ी की, पहली पसंद.... TN NEWS 24 आवाज़ जुर्म के खिलाफ़ 

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