भारतीय उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के कोर्ट में प्रवेश के अधिकार और पुलिस/प्रशासन द्वारा कोर्ट गेट बंद करने की कार्रवाई पर कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। इनमे से कुछ प्रमुख निर्णय इस प्रकार हैं:
1. हरिशंकर राय बनाम शमीम रिज़वी (1985) – सुप्रीम कोर्ट
मुद्दा: कोर्ट के आदेश के बिना पुलिस द्वारा वकीलों को कोर्ट में प्रवेश से रोका गया था।
फैसला:
– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों को कोर्ट में प्रवेश का मूलभूत अधिकार है और उन्हें रोकना भारतीय बार काउंसिल अधिनियम, 1961 और कोर्ट की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत गैरकानूनी है।
– कोई भी प्रशासनिक अधिकारी या पुलिसकर्मी कोर्ट के आदेश के बिना कोर्ट गेट बंद नहीं कर सकता।
2. इन रे: हरिदास ठाकुर (1993) – कलकत्ता हाईकोर्ट
मुद्दा: पुलिस ने वकीलों को कोर्ट में प्रवेश से रोका।
फैसला:
– हाईकोर्ट ने कहा कि वकीलों का कोर्ट में प्रवेश न्यायिक प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है।
– ऐसा रोकना अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
– कोर्ट के आदेश के बिना इस तरह की कार्रवाई कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी।
3. अशोक पांडे बनाम जिलाधिकारी, लखनऊ (2020) – सुप्रीम कोर्ट
मुद्दा: कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान वकीलों को कोर्ट में प्रवेश से रोका गया।
फैसला:
– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया एक आवश्यक सेवा है और वकीलों को प्रवेश देना जरूरी है।
– हालांकि, सरकार सुरक्षा के मानदंड लागू कर सकती है, लेकिन पूरी तरह प्रतिबंध लगाना अवैध है।
4. आर. के. गर्ग बनाम राजस्थान हाईकोर्ट (2019) – राजस्थान हाईकोर्ट
मुद्दा: पुलिस ने वकीलों के साथ कोर्ट परिसर में जबरदस्ती की।
फैसला:
– हाईकोर्ट ने कहा कि वकील और न्यायपालिका एक-दूसरे पर निर्भर हैं, और पुलिस द्वारा वकीलों को रोकना न्यायिक प्रक्रिया में बाधा है।
– ऐसी कार्रवाई को जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है।
5. सुरेश बनाम महाराष्ट्र राज्य (2006) – बॉम्बे हाईकोर्ट
मुद्दा: पुलिस ने कोर्ट गेट पर ताला लगाकर वकीलों को अंदर जाने से रोका।
फैसला:
– हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट की स्वतंत्रता और वकीलों के अधिकार लोकतंत्र के मूल सिद्धांत हैं।
– कोर्ट के आदेश के बिना इस तरह की कार्रवाई अस्वीकार्य है और कोर्ट की अवमानना का मामला बन सकता है।
निष्कर्ष:
– सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट लगातार यह स्पष्ट करते रहे हैं कि वकीलों को कोर्ट में प्रवेश से रोकना कोर्ट की अवमानना और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
– अपवाद: केवल कोर्ट के विशेष आदेश (जैसे – हिंसक विरोध या सुरक्षा कारणों) के तहत ही ऐसा किया जा सकता है।
– उपाय: यदि वकीलों को रोका जाए, तो वे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका (जैसे हेबियस कॉर्पस या अवमानना याचिका) दायर कर सकते हैं।
ये निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि न्याय प्रणाली में वकीलों की भूमिका अनन्य और आवश्यक है, और उनके अधिकारों की रक्षा करना न्यायालयों की जिम्मेदारी है।
टी यन न्यूज 24 आवाज जुर्मके खिलाफ सूरत से संवाददाता राजेंद्र तिवारी
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